ईंशान जब धरती पर जन्म लेता है तब प्रकृति ने उसके पास एक रंगमंच(stage) रख देती है और बोलती है बेटा इस रंगमंच में तू कुछ भी अभिनय(acting) कर सकता है| तू स्वतन्त्र रूप से कुछ भी,कोई भी अभिनय कर सकता है,बीना रोकटोक के | और ईंशान अपनी क्षमता के अनुसार अपनी अभिनय चुंनता है | और अपना अभिनय करता है |जब अभिनय समाप्त हो जाता है तब परिणाम की बारी आती है | उसी परिणाम के स्वरूप मनुष्य के उम्र का निश्चित् किया जाता है | अर्थात जो ब्यक्ति जितना अच्छा समाज सेवा करेगा,अच्छा कर्म करेगा,अपने दिल में ईंशानियत…
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