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जिंदगी एक रंगमंच( stage) है

ईंशान जब धरती पर जन्म लेता है तब प्रकृति ने उसके पास एक रंगमंच(stage) रख देती है और बोलती है बेटा इस रंगमंच में तू कुछ भी अभिनय(acting) कर सकता है| तू स्वतन्त्र रूप से कुछ भी,कोई भी अभिनय कर सकता है,बीना रोकटोक के | और ईंशान अपनी क्षमता के अनुसार अपनी अभिनय चुंनता है | और अपना अभिनय करता है |जब अभिनय समाप्त हो जाता है तब परिणाम की बारी आती है | उसी परिणाम के स्वरूप मनुष्य के उम्र का निश्चित्‌ किया जाता है | अर्थात जो ब्यक्ति जितना अच्छा समाज सेवा करेगा,अच्छा कर्म करेगा,अपने दिल में ईंशानियत रखेगा उस ब्यक्ति को उतना ही समाज में याद किया जाएगा जो ब्यक्ति अच्छा कर्म नही करेगा उसे समाज में उतना कम याद किया जाएगा | मनुष्य का उम्र स्वंम अपने हाथ में होते हुए भी हम इसे समझ नही पाते और शंसारिक मोह में पड‌ कर अपने ईंसानियत का सही उपयोग नही कर पाते है | और हम किसी अपने को जब खो देते है तब हम शोक मग्न हो जाते है | शोक तो उसे मनाना चाहिए कि हमने अभिनय में किया गलती किया है और किया नही कर पाया |
जब हम गेहूँ उगाते है तो हम मरे हुए दाना को ही खेत में डालते है | वह् गेहूँ का मरा हुआ दाना एक समय ऐसा आता है कि वह् उगता है |बडा होता है,उसमे फुल आता है,फिर फल आता है और उसी फल जब पकता है उसे गेहूँ कहते है उसे समाज द्वारा उपभोग किया जाता है | ठीक उसी प्रकार हमारा जीवन भी है जब हम इस संसार को छोड़ेगें तो हमारे द्वारा किया गया अभिनय को देखकर दुसरे लोग भी अनुसरण करेगें और हमे हमेसा याद कराते रहेंगे |

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Comment by Rituu B. Nanda on December 23, 2021 at 5:33pm

Its a huge loss and pain to us that you are no more with us. Thanks Vishnuji for what you have done to improve lives of so many others. 

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